Thursday, January 13, 2011

''बाबा महाकाल की नगरी में पेट तृप्त हुआ लेकिन नेत्रो की तृप्ति बाकी है''

                                   ''बाबा महाकाल की नगरी में पेट
                               तृप्त हुआ लेकिन नेत्रो की तृप्ति बाकी है''
                                        रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला''




बचपन से यह कहानी और किस्से सुनता चला आ रहा हँू कि बाबा महाकाल की नगरी से कोई से भूखा नही लौटता और न भूखा सोता है। कल बुधवार का दिन वास्तव में मेरे लिए सबसे दुखद क्षण रहा जब मैं बाबा महाकाल की नगरी से अपनी नेत्रो की भूख को उनके दर्शन से तृप्त नहीं कर पाया। बाबा महाकाल की नगरी में मेरे लिए एक रात तक काटने का संयोग नहीं था इसके पीछे बाबा की ही अपनी कोई मंशा रही होगी। नरसिंह घाट पर क्षिप्रा के किनारे राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा के कार्यक्रम में अनायस पहुंचा मैं उन लोगो के लिए अचानक प्रेरणा बन गया जो पत्रकार सम्मेलन में बड़ी दूर से आये थे। मेरे 27 सालो के अनुभव और संघर्ष के बाद उपजी त्रासदी और प्रशासन और सत्तापक्ष की मेरी आवाज को जिला बदर करने के प्रयासो के बीच उज्जैन में बाबा महाकाल के शहर में सम्मेलन में आये पत्रकारो का मेरे पक्ष में शंखनाद ऐसा लग रहा था कि भगवान शिव स्वंय अपने गणो के साथ मेरे लिए मैदान में आ गये।





बाबा महाकाल की नगरी में पत्रकारो की जमात के बीच जब मैं प्रसादी स्वरूप भोजन  पाया तो आत्मा तृप्त हो गई लेकिन नेत्रो की अभिलाषा आज भी अतृप्त है। बाबा स्वंय ही नही चाहते थे कि इस समय या धड़ी में वे मुझे अपने दर्शन देकर मेरी नेत्रो की अतृप्त अभिलाषा को पूर्ण करे। बाबा की जो भी इच्छा रही हो लेकिन कल का दिन मेरे जीवन में एक नई संचार क्रांति को जन्म दे गया। मुझे लगा कि अब मैं अकेला नहीं हँू ...... बाबा महाकाल की नगरी में मेरा यह दुसरा संयोग था जब मैं उनकी गलियो में घुम पाया। महाकाल के नगर क्षेत्र से मेरा अपना लगाव इसलिए भी है क्योकि बाबा महाकाल की नगरी सिहासन बत्तीसी एवं विक्रम बैताल की कहानियों से जुड़ी हुई है जिन्हे मैं बरसो से पढ़ते एवं छोटे तथा बड़े पर्दो पर देखता चला आ रहा हँू। पंवारो राजवंश के राज सिहासन की कहानियां भी बाबा महाकाल से जुड़ी हुई है। हमारे पूर्वजो के बताते किस्सो एवं भाटो की पोथियों में अंकित कथाओं एवं किस्सो से पता चलता है कि हमारा सबंध किसी न किसी रूप में इस पावन तीर्थस्थली से रहा है। संस्कारधनी नगरी उज्जैयनी के बारे में कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। बाबा महाकाल की नगरी से मैं बैतूल की पावन माटी को भी जोडऩे का प्रयास करता हँू। बैतूल जिले में मां सूर्यपुत्री ताप्ती के तट पर बारह शिवलिंगो की स्थापना स्वंय भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने भगवान विश्वकर्मा की मदद से की थी। पूरे देश एवं दुनिया में ताप्ती स्थित शिवधाम बारहलिंग नामक एक ऐसा स्थान है जहां पर पूरे बारह ज्योतिलिंगो की स्थापना नदी के तट पर शिलाओं पर ऊकेर कर की गई है। उन बारह ज्योतिलिंगो में बाबा महाकाल के ज्योतिलिंग भी शामिल है। शिवधाम बारहलिंग का धार्मिक महत्व इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योकि स्वंय भगवान जगदीश श्री हरि विष्णु ने राम अवतार में एक साथ बारह शिवलिंगो की स्थापना आदिगंगा कहलाने वाली सूर्यपुत्री मां ताप्ती के पावन तट पर करके अपने अराध्य भगवान भोलेनाथ भंडारी महाकाल का ताप्ती के पावन जल से जलाभिषेक करके उन्हे प्राण प्रतिष्ठित किया था। एक साथ पूरे बारहलिंग एक ही समय में कहीं पर भी प्राण प्रतिष्ठित नहीं हो सके है। ऐसे में देवाधिदेव महादेव को सूर्यपुत्री मां ताप्ती के तट पर अपने बारह रूपो के ज्योतिमर्य प्रकाश के साथ विराजमान होना पड़ा। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि देश में जितने भी ज्योतिलिंग बने है उनका जलाभिषेक करने के लिए आपको जल लेकर जाना पड़ता है चाहे वह मां रेवा का हो या फिर भागीरथी गंगा का लेकिन शिवधाम बारहलिंग में चौबिसो घंटे मां सूर्य पुत्री ताप्ती बीती कई सदियो - युगो - कालो एवं वर्तमान समय में भी स्वंय अपने पावन निर्मल जल से वर्षाकाल एवं शीत काल के चार माह प्रतिदिन जलाभिषेक करती हुई बहती है। बाबा महाकाल को क्षिप्रा का जल छु भी नहीं पाता होगा लेकिन ताप्ती तो प्रतिदिन हर पल बाबा महाकाल भोलेनाथ भण्डारी जटाशंकर शिव देवाधिदेव महादेव के बारह ज्योति स्वरूप ज्योतिलिंगो का जलाभिषेक करती है। बुधवार की शाम क्षिप्रा के पावन तट पर जब मैं भोजन कर रहा था तो मुझे बरबस बाबा वह कहानी याद आ गई। आज बाबा मुझसे कोसो दूर है। मैं अपने एक मित्र से अपनी पीड़ा को जब बाटने की कोशिस की तो उन्होने मुझे समझाया कि बाबा के दर्शन न करने के पीछे भी कोई कारण एवं कारक होगा। ऐसा भी हो सकता है कि स्वंय बाबा इस कार्यक्रम के दौरान तुमसे किसी न किसी रूप में मिल गये होगें और तुम उस निराकर ईश्वर को पहचान भी न पाये हो। मित्र का कहना था कि बाबा की मर्जी के बिना तो उनके क्षेत्र में तुम्हारा आना भी संभव नहीं था। बाबा ने ही तुम्हे कारण बन कर बुलवाया था दर्शन न करके भी यदि शिव कृपा हो जाये तो इससे बड़ी बात क्या होगी। मित्र की बात से मेरे दुखी मन को थोड़ी राहत मिली लेकिन शिव दर्शन को भूखी आंखो की भूख अभी भी जैसी की वैसी है। बाबा महाकाल अब शायद मेरी इस अर्ज को स्वीकार करके फिर मुझे अपने दिव्य स्वरूप रूपी ज्योतिलिंग के दर्शन के लिए बुलवा भेज दे यही मैं कामना करता हँँू। बाबा महाकाल के श्रीचरणो में समर्पित मेरा यह शब्दगान उनकी महिका को जन - जन तक पहुंचाने में सार्थक साबित होगा। मैं तो बाबा का स्वंय को भक्त मानता हँू क्योकि मुझे बाबा की वह असीम कृपा प्राप्त हुई है जिसे पाना हर किसी की किस्मत में संभव नहीं है। मैं शिवधाम बारहलिंग के उस पावन जल में स्नान एवं ध्यान करता हँू तो उनके बारहलिंगो को स्पर्श करके आता है। बारहलिंग की महिमा के पीछे मेरी यही अभिलाषा है कि मैं भी मां ताप्ती की महिमा का बखान उन शिव भक्तो के समक्ष करू जो किसी न किसी दिन मेरी तरह शिवधाम बारहलिंग में आकर उस जल में स्नान कर पुण्य प्राप्त करे।

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